शुक्रवार, 9 अप्रैल 2010

हे मेरे मुल्क के मालिक, व्यंग कविता

हे नागरिक
हे मेरे मुल्क के मालिक,
तू ड़र मत
हलचल मत कर
चल विचल मत हो
उठकर आ
चल लाइ्रर्न लगा
फिर मुझे वोट दे
अब तू घर जा
लंबी चादर तान
और आराम से सो जा ॥
सुबह उठ , स्नानकर आंखे मूंदकर,ईर्र्श्वर का ध्यानकर
मधुर मधुर सुर में मीठेमीठे भजन गा ।
पानी छानकर पी
उपासना व व्रतकर
अपना कर्म
पूरी मेहनत और लगन से कर ॥
ईधरउधर मत देख
चलविचल मत हो
अपने आराध्य पर पूरा पूरा विश्वास कर ।
आत्मा अमर है,शरीर नश्वर है
चिन्ता मतकर
होनी को कौन टाल पाया है
आज तक ।
रोना तो कायरता है
संतोषी नर सदा सुखी
मुस्कुराहट ही जीवन है, धीरज मोटीबात है
कष्ट और दुख तो परीक्षा है
वैतरणी पार करने की शिक्षा है ॥
इष्र्या व क्रोध मतकर
लालच बुरी बला है
सत्यमेव जयते
सच्चे मन से श्रमकर
खूब उत्पादन ब़ा
उत्पादन लक्ष्य को पूर्णकर
राष्ट को उपर उठा संपूर्ण राष्ट तेरा है
तेरी ही संपति है
मै भी तेरा ही हूं जो कुछ मेरा है,वह तेरा है
और जो तेरा है,वह मेरा है ।
तू मालिक है,मै सेवक हूं
तू है स्वामी ,मै हूं पहरेदार॥
अब चल ,डर मत
मतदान केन्द्र आ
मेरे चुनावचिन्ह को ,खूब ध्यान से देख
कोई भी शंका कुशंका मतकर
क्या तेरा है क्या मेरा है
जग चार दिन का डेरा है
तू लगन से अपना कर्मकर
मेरे चुनावचिन्ह पर
ध्यान से,प्रेम से,अपनी मोहर लगा
कर्मण्ये वाधिकारस्ते मां फलेषु कदाचना
अगले निर्वाचन पर अवश्य आना
और मुझे, अपना कीमती वोट देना भूल ना जाना
अवश्य आना ।ं।
मुझे वोट दे दिया अब चल ,परे हट ,बाजू हो ,जल्दीकर
दूसरे को आने दे, बुरा मत मान
जरा हवा तो आने दे
ठंडी ठंडी, सुखद,प्यारी प्यारी
सत्ता की,धन की ,पावर की, मधुर हवा
जो मेरे महान वंश की आत्माओं को
असीम शीतलता, शांति प्रदान करेगी
तूझे भी तो उसका पुण्य मिलेगा न
धन्यवाद लेकर,चल सीधा घर जा
अब सर पर बैठेगा क्या मेरे बाप
चल श्याना बन,रास्ता नाप ।
अगले चुनाव से पहले
दिखाई भी मत देना
मनहूस ॥
गिरीशनागड़ा

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