मंगलवार, 15 मई 2012

अब पछताए होत क्या ?


अब पछताए होत क्या ?


अब पूछ रहे हो ,सोच रहे हो
कि राह कौन सी जाऊ मै
अगर समय से पूर्व जाग जाते
तो यूँ  चोराहे पर लुटता नहीं चीर
दरबारियों स्तुति गानों से उपजी
आत्ममुग्धता में खो न जाते
तो प्यादे से नहीं पिटता यूँ वजीर ||
स्वयं को सर्वोपरिय मानकर
अहं भाव में यूँ डूबे न होते
विरक्ति रचने का विचार
पश्चाताप के साथ करना न पड़ता
दृढ निश्चय कर राष्ट्र हित के मुद्दों पर
अटल अगर रहते अटल
तो यूँ सपना जन्म लेकर मर न पाता
घुटने नहीं टेकते राष्ट्र के स्वाभिमान के मुद्दों पर
तो मधु ऋतु ,में बाग कदापि यूँ झर न पाता ||
आप और आपके दरबारी
आम जन से /सच्चे मन से / जुड़ पाते
उनकी व्यथाओ कि पीड़ा को पढ़ पाते
तो न तिनके बिखरते
न नयी सृष्टि रचना कि चिंता में
यूँ स्वयं को डूबने को विवश पाते ||
जिस विश्वास के साथ सौंपा था राज आपको दिल्ली का
उस विश्वास को नहीं दिखाते पीठ
उस विश्वास की सत्यनिष्ठा से रखते लाज
प्रश्न ही नही उठता उधारी का न घाटे का आज ||
राष्ट्रहितो की सतत कर उपेक्षा
अंतरराष्ट्रीय लोकनायक बनने की भूख के चलते
सतत सर्व प्रशंसनीय होना चाहा था आपने
आपको तो पता ही है कि
दो कश्ती में  करने वाले सवारी
कितना भी हिसाब जोड़े
न घर के रहते है, न घाट के ||

-गिरीश नागडा

राह कौन सी जाऊ मै ?


राह कौन सी जाऊ मै  ?
(अटल बिहारी वाजपेई )
 अटलजी कि कविता सत्ता से हटने के बाद -२४ मई २००४ को समाचार पत्रों में प्रकाशित हुई थी


राह कौन सी जाऊ मै  ?
चोराहे पर लुट-ता  चीर
प्यादे से पिट गया  वजीर
चलूं  आखिरी चल की बाज़ी
छोड़ विरक्ति रचाऊ मै
राह कौन सी जाऊ मै ?
सपना जन्मा और मर गया
मधु ऋतु ,में ही बाग झर गया
तिनके बिखरे हुए बटोरू या
नवसृष्टि सजाऊ मै ?
राह कौन सी जाऊ मै  ?
दो दिन मिले उधार में
घाटे के व्यापार में
क्षण - क्षण का हिसाब जोडू या
पूंजी शेष लुटाऊ मै ?
राह कौन सी जाऊ मै ?

- अटल बिहारी वाजपेई
17 मई 2004
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