शुक्रवार, 9 अप्रैल 2010

आखिर ! कब तक

तुम ये या वह
क्यो मुझे
विवश करते है बार बार
नफरत घृणा,द्वंद के लिए ॥
क्या,तुम नही जानते,
इन सबके चरम परिणाम ।
परमाणु एवं रासायनिक युद्ध की
कैसी कैसी विभीषिकाये
दुनिया झेल चुकी है ।
आज कोई भी तीन मिनट
समूची सभ्यता ,और पृथ्वीे को
जीवन विहीन कर सकते है ॥
तुम्हारी राह पर चलकर किस को
कब लाभ हुआ है ,आज तक ।
यह सरासर महंगा ,घाटे का सौदा है
क्यो चाहते हो ,विवश करते हो
कि मै यह सब करुं
अपनी संपूर्ण शक्ति और सामथ्र को
विनाश की तबाही कगार तक
पोषित करता रहूं
और अपने सारे
उसूल, सिद्घांत,आदशर ,उदेश्य और जीवनमूल्य
जिनकी मै पूजा करता हूं
उन्हे एक बारगी ही भूला दूं
मै तो
बार बार तुमसे छुपकर ,बचकर
निकल जाना चाहता रहा हूॅ।
किन्तु तुम
हर रास्ते,हर मोड पर
अलग अलग चेहरो के साथ
मुश्तेैद खडे मिलते हो
धमकाते, मूंछो पर बल देते हुए
कब तक
अपमानित होकर, गरल पीता रहूंगा
आखिर !
मै देवता तो नही ॥
गिरीशनागड़ा

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