।
मेरी अर्द्धागिंनी ने
एक सुन्दर, फूल से बालक को
जन्म दिया
सभी उसके दुलार की
खुशी में खो गये
जब वह बिमार हुआ ।
मेरा खाना पीना,सोना दुश्वार था
सारी रात गोद में लेकर पंखा झलता था
ड़ाक्टरो के पास आधी रात को दौड़ता था
जो सामने खड़े भी न रह सके
उसके लिए उनकी भी खुशांमदे की है मैने ॥
जब वह अपनी शिक्षा पूरी कर
जीवन के मैदान में उतरा था
तब कलेजा भय व आशंका से कांप रहा था
सोचता था मेरा फूल सा कलेजे का टुकड़ा
कैसे समायोजित कर पायेगा
इस चालाक,मक्कार,निर्मम दुनिया में
अपने आप को ॥
परन्तु
मुझे पता ही न चला कि
कब इस निर्मम दुनिया में
खुद को समायोजित करते करते
वह खुद इतना निर्मम हो गया
सुबह वृद्घाश्रम की विवरणिका देकर के बोला
शाम तक इनमें से कोई एक चुन लेना
कल रविवार है ,मुझे छुट्टी है
आपको छोड़ आउंगा ॥
तब मुझे लगा कि
अपने बेटे से ंमेरा सच्चा परिचय
तो आज हुआ है ॥
गिरीश नागड़ा
शुक्रवार, 9 अप्रैल 2010
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3 टिप्पणियां:
vyathit karti huyi rachna.
bete ne ye nahi socha ki bhavishya men yahi drashya repeat bhi ho sakta hai bas chehre doosre honge. kal ko uska beta bhi aisa hi kar sakta hai.
likhte rahiye.
shubh kamnayen
कृपया वर्ड वैरिफिकेशन की कष्टकारी प्रक्रिया हटा दें !
इसकी वजह से पाठक प्रतिक्रिया देने में कतराते हैं !
बहुत ही आसान तरीका :-
ब्लॉग के डेशबोर्ड पर जाएँ > सेटिंग पर क्लिक करें > कमेंट्स पर क्लिक करें >
शो वर्ड वैरिफिकेशन फार कमेंट्स > यहाँ दो आप्शन होंगे 'यस' और 'नो' बस आप "नो" पर टिक
कर दें >नीचे जाकर सेव सेटिंग्स कर दें !
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
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