गुरुवार, 20 मई 2010

कुछ तो शर्म करो

देखो कुछ तो शर्म करो
इस तरह देश देश मत चिल्लाओ
गर्व से अपना सर यूँ न उठाओ
वास्तव में यह देश
खुद नही डूब रहा है
उसे तुम लोग ही डूबा रहे हो
शर्म करो बेशर्मो
उसपर देशभक्ति की कसमे खा रहे हो

तुम ही तो करते हो
नित हत्या ,बालात्कार,तस्करी
सारी चोरबाजारी,रिश्वतखोरी
और हर गलत काम में मुँहजोरी
तुम ही ने तो माँं बहनो के सारे अर्थ गंवा दिए है
तुम ही ने उनके लिए कोठे सजा दिए है
तुम ही तो हो जिसने
चंद लम्हो में सुखी घर संसारो को
पाप के महल बना दिये है
तुम ही ने ना जाने कितने मासूमो को
अपने मतलब की वेदी पर
बलि चा दिया है
तुम ही करते हो
सारी हिंसा तोडफोड आगजनी
तुम ही करते हो देश के प्रति ग़द्दारी
तुम ही करते हो देश को लहूलुहान
फिर भी यह देश तुम्हे अपनी गोद मे
सहला रहा है पुचकार रहा है
प्राणप्रिय की तरह दुलार रहा है
इस आसार उम्मीद में तुम्हारी
सारी गल्तियो को माफ कर रहा है
कि तुम्हे अपनी गल्तिओ का एहसास होगा
और एक दिन तुम सुधर जाओगे
पर लगता है कि तुमने तो
कसम खा रखी है कि
हम नही सुधरेंगें ॥


गिरीशनागड़ा

1 टिप्पणी:

SANSKRITJAGAT ने कहा…

पर लगता है कि तुमने तो
कसम खा रखी है कि
हम नही सुधरेंगें ॥

sundar abhivyakti

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