गुरुवार, 20 मई 2010

>ये कलाकार

ये कलाकार
सवेदना ,भावनाओं के
कुशल ,कुशाग्र चितेरे
केश से महीन
ज्ञात अज्ञात विपयो को
कितनी साफगोई से
उठाते है
वे कितने ज्ञानी,श्रेप्ठऔर समर्थ है
धीर गम्भीर गहरे और स्पप्ट है
किन्तु
जिस दिन से उनसे
परिचय हुआ है घनिप्ट
हां उसी क्षण से
वे वह नही रहे
जो अब तक थे ।
हांलाकि
सब कुछ वही है
और प्रतिपल श्रेप्ठ भी
किन्तु सच!
वे , जरा भी नही है वे
भावना और संवेदना के सागर मे डूबे वें
उनकी आंखो मे
देखते हुए आती है शर्म
और लगता है भय
कही वे हमें
समूचा निगल ही न जाये ॥
.

.गिरीश नागड़ा

कोई टिप्पणी नहीं: