बुधवार, 19 मई 2010

निर्वंशया

मैने गल्ती की
बुजुर्गो की सलाह मानी
विवाह किया बुजुर्ग खुश हुए
वे देखना चाहते थे
अपना वंश
किन्तु मै अब नही चाहता
अपना आगे वंश
किसी में भी अपना अंश
बस इसीलिए
अपनी
नसबन्दी करा दी
मै कतई नही चाहता
बुजुर्गो की इच्छा के लिए
जो पाप मै कंरू
किसी और को लाकर
वह भी वही अपराध करे
और मेरा वंश ,मेरा अंश
इस दोजख की आग में जले ॥
अब शुभ,शेष क्या है इस संसार में
न कहीं सत्य है न कही शिव न कहीं सुन्दर
है तो चारो और
ह्रिंसा,घृणा,इप्र्या,द्वेष और नफरत
दो ही आवाज सुनाई देती है
मारो या मरो
तुम मारो नही तो कोई
तुम्हे मार डालेगा
मै नही चाहता कि
दुनिया के अंत तक
मेरा खून/मेरा वंश/ मेरा अंश
इस आग में खुद जले
औरो को जलाए
नही मेरे साथ
यह नही चलेगा
मै निरवंशया कहलाउंगा
वह मुझे चलेगा
पर मेरा वंश ,मेरा अंश
अब इस दो जख की आग में नही जलेगा ॥


गिरीश नागड़ा

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