शुक्रवार, 9 अप्रैल 2010

सच्चा परिचय




मेरी अर्द्धागिंनी ने
एक सुन्दर, फूल से बालक को
जन्म दिया
सभी उसके दुलार की
खुशी में खो गये
जब वह बिमार हुआ ।
मेरा खाना पीना,सोना दुश्वार था
सारी रात गोद में लेकर पंखा झलता था
ड़ाक्टरो के पास आधी रात को दौड़ता था
जो सामने खड़े भी न रह सके
उसके लिए उनकी भी खुशांमदे की है मैने ॥
जब वह अपनी शिक्षा पूरी कर
जीवन के मैदान में उतरा था
तब कलेजा भय व आशंका से कांप रहा था
सोचता था मेरा फूल सा कलेजे का टुकड़ा
कैसे समायोजित कर पायेगा
इस चालाक,मक्कार,निर्मम दुनिया में
अपने आप को ॥
परन्तु
मुझे पता ही न चला कि
कब इस निर्मम दुनिया में
खुद को समायोजित करते करते
वह खुद इतना निर्मम हो गया
सुबह वृद्घाश्रम की विवरणिका देकर के बोला
शाम तक इनमें से कोई एक चुन लेना
कल रविवार है ,मुझे छुट्टी है
आपको छोड़ आउंगा ॥
तब मुझे लगा कि
अपने बेटे से ंमेरा सच्चा परिचय
तो आज हुआ है ॥

गिरीश नागड़ा

मन की तृष्णा

हर क्षण
जीने की आशा में
मरते जाते है हम
एक विचार को
अंतिम सत्य मानकर
उसके पीछे भागते है हम
और जब उसके
निकट पंहुंचते है हम
तो देखते है
सच का दूसरा ही रूप
हमारे सामने खड़ा है ॥
किसी मृग मरिचिका के पीछे
फिर भी भागते रहते है सतत
इसी तरह हम ।
एक सत्य से दूसरे पर
परन्तु समझ नही पाते है
जीवन के उदय से अस्त तक
हम
अपमे मन की तृष्णा को ॥

गिरीशनागड़ा

आखिर ! कब तक

तुम ये या वह
क्यो मुझे
विवश करते है बार बार
नफरत घृणा,द्वंद के लिए ॥
क्या,तुम नही जानते,
इन सबके चरम परिणाम ।
परमाणु एवं रासायनिक युद्ध की
कैसी कैसी विभीषिकाये
दुनिया झेल चुकी है ।
आज कोई भी तीन मिनट
समूची सभ्यता ,और पृथ्वीे को
जीवन विहीन कर सकते है ॥
तुम्हारी राह पर चलकर किस को
कब लाभ हुआ है ,आज तक ।
यह सरासर महंगा ,घाटे का सौदा है
क्यो चाहते हो ,विवश करते हो
कि मै यह सब करुं
अपनी संपूर्ण शक्ति और सामथ्र को
विनाश की तबाही कगार तक
पोषित करता रहूं
और अपने सारे
उसूल, सिद्घांत,आदशर ,उदेश्य और जीवनमूल्य
जिनकी मै पूजा करता हूं
उन्हे एक बारगी ही भूला दूं
मै तो
बार बार तुमसे छुपकर ,बचकर
निकल जाना चाहता रहा हूॅ।
किन्तु तुम
हर रास्ते,हर मोड पर
अलग अलग चेहरो के साथ
मुश्तेैद खडे मिलते हो
धमकाते, मूंछो पर बल देते हुए
कब तक
अपमानित होकर, गरल पीता रहूंगा
आखिर !
मै देवता तो नही ॥
गिरीशनागड़ा

हम सदा तुम्हारे साथ है

सुनो!
उठो
देखो
समय की धारा को कोई
मोडने का
प्रयास कर रहा है
देखो
समझो
और उसका साथ दो
उसे राकने की अक्षम्य भूल न करो
बल्कि
उसे हौसला दो
उसे कहो
वह आगे ब़े
दृढ़ रहे, हिम्मत रखे
कहे,हम साथ है
हम सब मिलकर साथ देंगे, तुम्हारा
और एक दिन
समय की इस पीड़ा दायक चुभन को
मिटाकर ही दम लेंगे
तुम चलते चलो,
संघर्ष करो
हम हर कदम पर
तुम्हारे साथ है
दिल से
क्योकि हम भी चाहते है कि
इस माहोल को बदला जाए
अति का अंत हो जाए ।
पटेल, शास्त्री, सुभा से महापुरू
अब,
इस धरा पर आयेंगें नही
यह बीड़ा, आज नही तो कल
हम तुम को ही उठाना होगा
तुमने उठाया है,तुम्हे साधुवाद
कभी अपने को अकेला मत समझना
हम सदा तुम्हारे साथ है
कदम दर कदम ॥

...गिरीश नागड़ा

हे मेरे मुल्क के मालिक, व्यंग कविता

हे नागरिक
हे मेरे मुल्क के मालिक,
तू ड़र मत
हलचल मत कर
चल विचल मत हो
उठकर आ
चल लाइ्रर्न लगा
फिर मुझे वोट दे
अब तू घर जा
लंबी चादर तान
और आराम से सो जा ॥
सुबह उठ , स्नानकर आंखे मूंदकर,ईर्र्श्वर का ध्यानकर
मधुर मधुर सुर में मीठेमीठे भजन गा ।
पानी छानकर पी
उपासना व व्रतकर
अपना कर्म
पूरी मेहनत और लगन से कर ॥
ईधरउधर मत देख
चलविचल मत हो
अपने आराध्य पर पूरा पूरा विश्वास कर ।
आत्मा अमर है,शरीर नश्वर है
चिन्ता मतकर
होनी को कौन टाल पाया है
आज तक ।
रोना तो कायरता है
संतोषी नर सदा सुखी
मुस्कुराहट ही जीवन है, धीरज मोटीबात है
कष्ट और दुख तो परीक्षा है
वैतरणी पार करने की शिक्षा है ॥
इष्र्या व क्रोध मतकर
लालच बुरी बला है
सत्यमेव जयते
सच्चे मन से श्रमकर
खूब उत्पादन ब़ा
उत्पादन लक्ष्य को पूर्णकर
राष्ट को उपर उठा संपूर्ण राष्ट तेरा है
तेरी ही संपति है
मै भी तेरा ही हूं जो कुछ मेरा है,वह तेरा है
और जो तेरा है,वह मेरा है ।
तू मालिक है,मै सेवक हूं
तू है स्वामी ,मै हूं पहरेदार॥
अब चल ,डर मत
मतदान केन्द्र आ
मेरे चुनावचिन्ह को ,खूब ध्यान से देख
कोई भी शंका कुशंका मतकर
क्या तेरा है क्या मेरा है
जग चार दिन का डेरा है
तू लगन से अपना कर्मकर
मेरे चुनावचिन्ह पर
ध्यान से,प्रेम से,अपनी मोहर लगा
कर्मण्ये वाधिकारस्ते मां फलेषु कदाचना
अगले निर्वाचन पर अवश्य आना
और मुझे, अपना कीमती वोट देना भूल ना जाना
अवश्य आना ।ं।
मुझे वोट दे दिया अब चल ,परे हट ,बाजू हो ,जल्दीकर
दूसरे को आने दे, बुरा मत मान
जरा हवा तो आने दे
ठंडी ठंडी, सुखद,प्यारी प्यारी
सत्ता की,धन की ,पावर की, मधुर हवा
जो मेरे महान वंश की आत्माओं को
असीम शीतलता, शांति प्रदान करेगी
तूझे भी तो उसका पुण्य मिलेगा न
धन्यवाद लेकर,चल सीधा घर जा
अब सर पर बैठेगा क्या मेरे बाप
चल श्याना बन,रास्ता नाप ।
अगले चुनाव से पहले
दिखाई भी मत देना
मनहूस ॥
गिरीशनागड़ा

कृतज्ञ हूं मै सदा आपका

मैने नही किया है उनकी
अनुकम्पा का ऋण अदा
बरसती रही मुझ पर
फिर भी उनकी असीम कृपा
और स्नेह सदा ॥
जब भी लगी मुझे धूप जरा
झट से घुस जाता था मै सदा
उनके आँचल की छाँव में
अपने हिस्से की छाँव भी
मुझे ओ़ाकर वे खुद सह लेती
सारी तीखी धूप ,तपन और चुभन
जिनको सहारा ,छाँव ,शीतलता देना
फर्ज था मेरा वह तो ंमै निभा नही पाया ॥
कभी लेशमात्र भी उऋण
हो नही पाउंगा उनके कर्ज से
फिर भी मेरी कृतद्यनता की परवाह न कर
जो सदैव अटूट कृपा रही है मुझ पर
तो आज शोष है मेरा ये अस्तित्व
वरना मै तो कब का
बिखर गया होता ॥

गिरीश नागड़ा

शुक्रवार, 2 अप्रैल 2010