मंगलवार, 11 मई 2010

तुम्हारे आने की महक

तुम्हारे आने की महक
डॉ.गिरीश नागड़ा


मैं हर वक्त
हर क्षण
तुम्हारे प्यार,ऊर्जा का
तलबगार रहा हूँ।
मैं रहा हूँ
हर क्षण
प्यासा
तुम्हारे प्यार का।

तुम्हारे इन्तजार के
लम्हों को
ज‍ितना मैंने झेला है
सदियों सा
अहसास दे गया
वह इन्तजार।

मैं यहाँ जीवन-पथ पर
अकेला निपट
एकाकी खड़ा
झेल रहा हूँ
उस कड़ी धूप को भी
हँसते-हँसते,
क्योंकि
मुझे यहाँ से
दिखाई दे रही है
तुम्हारी पालकी की गुम्बज
और यहाँ की हवाओं में
आ रही है
तुम्हारे आने की महक।
Posted by girish.nagda

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