सोमवार, 29 मार्च 2010

जानवर और इन्सान - गिरीश नागडा

एक जीवन
एक जानवर/ एक इन्सान
जानवर / निरीह, मूक, व असहाय ।
काटा,चमड़ा उतारा
लटका दिया दुकानदार ने
इन्सानो के बाजार मे
इन्सानी भूख के लिए ॥
इन्सान / विश्व शांति, विश्वबंधुत्व
अहिंसा प्रेम ,करूणा
संवेदनाओं का अथाह सागर
आह!सागर
सागर / गागर
गागर/सागर ॥
एक हत्या एक जानवर/ एक इन्सान
बहता खून, तड़फडाता शरीर
खून की लाली और
कटने का दर्द
दोनो एक है ,मगर
एक के लिए है आंसू
दूसरे के लिए है
एक क्रूर मुस्कान ॥
एक हत्या एक जानवर/ एक इन्सान
इन्सान हाय कलेजा /
कितना पत्थर,कठोर,निर्मम
आलोचनाएं, भत्सर्नाएंऔर सजाएं
जानवर हाय कलेजा/
कितना लजीज,स्वादिट और उम्दा
कृपादृटि,प्रशंसा,और पुरूस्कार ॥

इन्सान/जिसका खाया,
उससे किया दगा
जानवर/जिसका खाया,या न भी खाया
उसके लिए दे दिया सर्वस्व ॥
जानवर तो पशु है
पशु / हिंसा ,वहशीपना,असहिएाुता
पशु/ न तरतीब,न तहजीब न तमीज
पशु/न भूत, न वर्तमान,न भविय
पशु/न इतिहास,न सभ्यता, न संस्कृति
पशु/कुछ भी नहीं/सब कुछ
सभी कुछ ।
इन्सान/ सब कुछ/सभी कुछ
परन्तु कुछ भी नहीं
ओछा,कृतघन व नंगा ॥
हपतपेीण्दंहकं/लींववण्बवउ डॉ.गिरीश नागड़ा

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