शनिवार, 5 जून 2010

इन्तजार

मै हर वक्त
हर क्षण
तुम्हारे प्यार,उर्जा का
तलबगार रहा हूं।
मै रहा हूं
हर क्षण
प्यासा
तुम्हारे प्यार का ॥

तुम्हारे इन्तजार के
लम्हो को
जितना मैने झेला है
सदियो सा
एहसास दे गया
वह इन्तजार॥
मै यहॉँ जीवन पथ पर
अकेला निपट
एकाकी खड़ा
झेल रहा हूं
उस कड़ी धूप को भी
हंसते हंसते,
क्योकि
मुझे यहाँं से
दिखाई दे रही है
तुम्हारी पालकी की गुम्मद
और यहाँं की हवाओ मे
आ रही है
तुम्हारे आने की महक ॥

गिरीशनागड़ा

1 टिप्पणी:

संजय भास्‍कर ने कहा…

सुन्दर भावों को बखूबी शब्द जिस खूबसूरती से तराशा है। काबिले तारीफ है।